Free Download Complete Srimad Bhagavad Gita From Sri Krishna TV Series in Mp3 Fomat
Krishna (TV series)
Krishna (also called Shri Krishna) is an Indian television series created, written, and directed by Ramanand Sagar. The series originally aired weekly on Doordarshan. It is an adaptation of the stories of the life of Krishna. Shri Krishna was first broadcast on Doordarshan's Metro Channel (DD 2) from 1993.In 1996, the DD Metro broadcast was discontinued and the show was broadcast from the beginning on DD National. In 1999, the show moved to Zee where the remaining episodes were broadcast.
The show was based on Bhagavat Puran, Brahma Vaivart, HariVamsa, Vishnu Puran, Padma Puran, Garga Samhita, Bhagavad Gita & Mahabharat.
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मोहन नैना आपके नौका के आकार,
जो जन इनमें बस गये हो गये भव से पार....
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श्रीमद भगवदगीता
हे पाण्डव! सब कर्मो के मेरे लिए करना, मेरे ही परायण होना, आसक्ति रहित होना, और अन्य किसी प्राणी के साथ वैर न करना-ऐसी भक्ति से युक्त भक्त मेरे को ही प्राप्त होता है।
श्री मद भगवदगीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को मुलत: ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग की शिक्षा दी। ज्ञान के विषय में उनका कहना है।
‘‘ नहि ज्ञानेन सदृश पवित्रमिह विद्यते ‘‘
इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र अन्य कुछ भी नहीं जान पडता। ज्ञानियों के लिए वो सम्मान प्रकट करते हुए कहते है ‘‘ज्ञानी तो साक्षात मेरा स्वरूप है।
‘‘ ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्’’
जब-जब इस भी ज्ञान योग का लोप इस धरती पर होता है तथा तरह-तरह के पाखंड धर्म के रूप में स्वीकार किए जाते है ‘‘ श्री कृष्ण का संदेश गूंज उठता है।
‘‘अर्जुन! मैंने इस पवित्र ज्ञान योग की सूर्य को दीक्षा दी, फिर यह पीढी दर पीढी चलता हुआ मनु से इक्ष्वाकु और उससे राज ऋषियों ने सीखा। फिर यह संसार से लुप्त हो गया। इस शाश्वत योग को पु:न स्थापित करना था इसलिए मुझे आना पड़ा।
जो व्यक्ति उगते हुए सूर्य का ध्यान आज्ञाचक्र पर करेगें वो इस ज्ञान के अधिकारी बन सकते है परन्तु प्रारम्भ में चौबीस मिनट से अधिक न करें। इसलिए शास्त्रों में सविता देवता को गुरू तुल्य माना गया है। जिनकें कोई गुरू न हो, सविता को अपना गुरू मानें। समय आने पर परमात्मा स्वत: जीवात्मा को उसके गुरू से मिला देता है। गुरू धारण करने में अधीरता दिखाना समझदारी नहीं है। पवन सुत हनुमान जी ने सविता देवता को गुरू बनाकर सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड का ज्ञान विज्ञान एवं ऋद्धि-सिद्धियों को प्राप्त कर लिया था।
परन्तु ज्ञानी को भी दृढता पूर्वक कर्म के नियम का पालन करना होता है जिससे जनसमान्य उनसे प्रेरणा लेकर आल्सय और भ्रम की स्थिति में न जा फसें। क्योंकि यदि महान व्यक्तियों के द्वारा यदि आदर्शो की स्थापना के लिए कर्म नहीं किया गया तो जन सामान्य का कोई मार्गदर्शक न हो पाएगा और वो इन्द्रिय सुखों के सुलभ मार्ग में भटक जाँएगें।
कर्म किस प्रकार करे भगवान का आदेश है यज्ञार्थ कर्म करों। जो कर्म परिणाम में बंधनदायक नहीं है, उन्हें यज्ञ कहा जाता है। अन्य सब कर्म बन्धनकारी है। हे अर्जुन! सब मोह छोड़कर, प्रत्येक कार्य को भगवान को समर्पित करते हुए लोकहित के लिए करो। यहीं कर्म योग है।
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