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The discourse takes place in the middle of a battle scene of the Mahabharata saga. As the Bhagavad Gita begins, the great warrior Arjuna is despondent to see his friends and relatives arrayed in battle before his chariot, intending to fight against his side in this war. In the midst of this dilemna, Arjuna refuses to fight and takes refuge in his friend Krishna, who then reveals his cosmic, universal form and teaches Arjuna the great wisdom of life, death, and enlightenment. Chapter 1 sets the stage with names of all the warriors and instruments of war that were gathered before Arjuna on the battlefield, and the subsequent chapters elucidate the Bhagavad Gita teachings and wisdom.
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Part 1.
Part 2.
Part 3.
जैसे सूरज में है गर्मी
है चाँद में उसकी शीतलता
वायु बहाए खुशबू सदा
है फूलों में स्वाभाविक कोमलता.
रोके कोई कितना भी पर
नदियाँ बहती ठहरती नही
जाने अनजाने कैसे भी पकड़ो
आग जलाने से रहती नही
ऐसा ही स्वभाव है कान्हा का
सब पे उसकी करुणा बरसती .
देखे नही कभी वो पात्र-कुपात्र
कृपा इनकी सब पे ही रहती.
इनका स्वभाव,प्रवृत्ति इनकी
करुणा किये बिन रह नही सकते.
वो भी बिना कारण ही,प्रेमवश
प्यार अपना सबपे छिडकते.
मंशा हमारी बुरी भी होती
तो भी बुराई वो लेते नही.
कोशिश में रहते हरदम,हमेशा
मिल जाए मौका कृपा का कही .
गई थी मारने पूतना उनको
पर माता की गति दे दी उसको.
दूध का मोल चुकाया उसका
देखा ही नही उन्होंने विष को.
करुणा से ही बने हैं शायद
ह्रदय उनका करुणा का सागर.
कर्ज उनका क्या कोई चुकाए
कम है जीवन का भी न्योछावर.
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